नाग पंचमी 2 अगस्त दिन मंगलवार को,हिन्दू जनमानस करेंगे नागदेव कि पूजा
◆कालसर्प योग से पीड़ित जातको के लिए शुभ मंगलकारी होगा नाग देवता कि पूजा-ज्योतिषाचार्य पं.बृजेश पाण्डेय◆
सुरेन्द्र प्रसाद रावत
गोरखपुर(निशा प्रहरी)। विद्वत जनकल्याण समिति रजि द्वारा संचालित भारतीय विद्वत् महासंघ के महामंत्री पं. बृजेश पाण्डेय ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार नाग पंचमी का त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है.ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नाग पंचमी का त्योहार प्रत्येक वर्ष जुलाई या अगस्त के महीने में मनाया जाता है.
इस वर्ष नाग पंचमी का त्योहार दिनांक 2 अगस्त दिन मंगलवार को मनाया जा रहा है.
नाग पंचमी पूजा का मुहूर्त 2 अगस्त को प्रात: 5 बजकर 42 मिनट से 8 बजकर 24 मिनट तक है, मुहूर्त की अवधि 2 घण्टा 41 मिनट सर्वोत्तम है.
.इस दिन सर्पों की पूजा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं। इसलिए इस खास तिथि पर सर्पों को दूध पिलाने कि भी परम्परा है.
ज्योतिषाचार्य पण्डित बृजेश पाण्डेय बताया कि नाग पंचमी के दिन वासुकी नाग, तक्षक नाग, शेषनाग आदि की पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घर के द्वार पर नागों की आकृति भी बनाते हैं और हिन्दू धर्म मे नाग पंचमी का महत्ता है कि नाग को देवता का रूप माना जाता है और उनकी पूजा का विधान है.दरअसल नाग को आदि देव भगवान शिव शंकर के गले का हार और सृष्टि के पालनकर्ता हरि विष्णु की शैय्या माना जाता है. इसके अलावा नागों का लोगों के जीवन से भी नाता है.
सावन के महीने में हमेशा जमकर बारिश होती है और इस वजह से नाग जमीन से निकलकर बाहर आ जाते हैं. माना जाता है कि नाग देवता को दूध पिलाया जाए और उनकी पूजा की जाए तो वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. यही नहीं कुंडली दोष दूर करने के लिए भी नाग पंचमी का अत्यधिक महत्व है.
नाग पंचमी पूजा सामग्री
नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति, लकड़ी की चौकी, जल, पुष्प, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, चीनी का पंचामृत, लड्डू और मालपुए, सूत्र, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, धूप-दीप, ऋतु फल, पान का पत्ता दूध, कुशा, गंध, धान, लावा, गाय का गोबर, घी, खीर और फल आदि।
नाग पंचमी की पूजा विधि
सुबह स्नान करने के बाद घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाएं. मन में व्रत का सकंल्प लें.नाग देवता का आह्वान कर उन्हें बैठने के लिए आसन दें.फिर जल, पुष्प और चंदन का अर्घ्य दें.दूध, दही, घी, शहद और चीनी का पंचामृत बनाकर नाग प्रतिमा को स्नान कराएं.इसके बाद प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढ़ाना चाहिए.फिर लड्डू और मालपुए का भोग लगाएं.फिर सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप-दीप, ऋतु फल और पान का पत्ता चढ़ाने के बाद आरती करें.माना जाता है कि नाग देवता को सुगंध अति प्रिय है. इस दिन नाग देव की पूजा सुगंधित पुष्प और चंदन से करनी चाहिए.नाग पंचमी की पूजा का मंत्र इस प्रकार है: “ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा“
शाम के समय नाग देवता की फोटो या प्रतिमा की पूजा कर व्रत तोड़ें और फलाहार ग्रहण करें.
पं.बृजेश पाण्डेय जी ने यह भी बताया कि नाग पंचमी के दिन किसी शिव मंदिर में साफ-सफाई जरूर करें,यदि संभव हो तो शिव मंदिर में किसी तरह का नवनिर्माण करा सकते हैं अथवा मंदिर की मरम्मत या उसकी पुताई आदि का भी कार्य करा सकते हैं,यदि संभव हो सके तो नाग पंचमी के दिन किसी ऐसे शिव मंदिर में जहां शिवजी पर नाग नहीं हो वहां प्रतिष्ठित करवाएं। इस उपाय को करने से आपको नाग देवता का आशीर्वाद प्राप्त होगा। जब किसी जातक की कुंडली में राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाते हैं तब कुंडली में कालसर्प दोष बनता है।
ज्योतिष गणना अनुसार कुंडली में 12 प्रकार के कालसर्प दोष बनते हैं। जिसमे अनंत कालसर्प योग,कुलिक कालसर्प योग, वासुकी कालसर्प योग,शंखपाल कालसर्प योग,पद्म कालसर्प योग,महापदम कालसर्प योग,तक्षक कालसर्प योग,कर्कोटक कालसर्प योग,शंखनाद कालसर्प योग, पातक कालसर्प योग,विषधर कालसर्प योग,शेषनाग कालसर्प योग सम्मिलित है जातको के इस सभी काल सर्पों से निदान हेतु नागपंचमी का दिन नाग देवता की पूजा करना सर्व कल्याणकारी होता है.