पत्रकार फतेह खान
सोता हूं यह मैं अक्सर
मेरी पहचान क्या है?
सोचता मेरे दिल में बसी
मेरी रूह मेरी जान क्या है||
गर्दिशों में मैं तो कलम संग उड़ना चाहता हूं
काट देते पंख मेरे अपने बताओ मेरा मान क्या है||
अपनी जिम्मेदारियों को भी खूब से निभाता हूं
फिर भी कहते हद ना उलाँघना मेरे जज्बात क्या है||
मन के भीतर एहसास में लिखती जाता हूं
मेरे अपने ही ना समझे मुझे कि मेरे एहसास क्या है||